Friday 12 August 2011

ग़ज़ल


कोई मारे तो न मरे कोई
सिर्फ इतनी दुआ करे कोई ।
मौत आने तलक तो जी लें हम ।
इतनी मोहलत अता करे कोई ।
अपने हाथों में आइना लेकर
जो भी चाहे ख़ता करे कोई ।
हादसों में तो आंख भर आए
हमसे इतनी वफ़ा करे कोई ।
खूं की रंगत कभी नहीं बदले
अब तो ऐसी दवा करे कोई ।
चंद लम्हे खुलूस उल्फ़त के
हंसते-हंसते विदा करे कोई ।

- एस.एन. सक्सेना, अशोक नगर (म.प्र.)

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