बावफा हो कर भी हम बेवफा कहलाये हैं
अपनो ने ही सीने में नश्तर चुभाये हैं |
चाहा तो नहीं था कि यकीं करें उनकी बातों पर
पर फिर भी उनके वादे पर हमने धोखे खाए हैं |
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं |
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
संगीता स्वरुप
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