अभय देओल भले ही देओल खानदान से आते हैं, लेकिन उनकी पहचान चाचा धर्मेद्र और उनके बेटों सनी और बॉबी से बिल्कुल जुदा है। निर्माता-निर्देशक अजित सिंह देओल के बेटे अभय मुंबई में पले-बढ़े हैं। यहां वे पाठकों से अपने बचपन की खुशनुमा यादों और शरारतों को शेयर कर रहे हैं-
[संयुक्त परिवार का शरारती बच्चा]
मैं संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा हूं। मेरे घर में परंपरा, संस्कार, आदर्श आदि का बहुत ख्याल रखा जाता है। मुझे बचपन में ही परिवार की परंपराओं, रीति-रिवाजों और नैतिक बातों से अवगत करा दिया गया था। मुझे याद है, परिवार में हम सात बच्चे थे। मैं चचेरे भाई बॉबी के अधिक करीब रहा। उन्हीं के साथ खेलता-कूदता था और उन्हीं के साथ मिलकर शरारतें करता था। मैं परिवार का सबसे शरारती बच्चा माना जाता था। मैं सनी भैया से बहुत डरता था।
[पढ़ाई के लिए खूब डांट खायी]
मैं पढ़ने में औसत था। मेरा पसंदीदा विषय अंग्रेजी था। मम्मी-पापा चाहते थे कि मैं अपनी कक्षा का सबसे तेज छात्र बनूं। पढ़ाई के लिए मुझे मम्मी-पापा और टीचर से खूब डांट पड़ती थी। कभी-कभी तो मार भी पड़ती थी। सच कहूं तो मेरा मन खेलने में अधिक लगता था। मैं इंतजार करता था कि जल्दी से स्कूल में छुंट्टी हो और मैं खेलने के लिए भागूं। बॉबी के बिना बचपन में मैं कुछ नहीं करता था। हम दोनों एक जान दो शरीर थे। मैं बिल्डिंग के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलता था।
[मम्मी से कहता था मन की बातें]
मैं अधिकतर समय बॉबी के साथ रहता था, लेकिन अपनी मन की बातें मम्मी से कहता था। मुझे कुछ चाहिए होता था या कोई शिकायत करनी होती थी तो मैं मम्मी से रात में सबके सोने के बाद कहता था। उन्होंने मुझे सही और गलत के बीच फर्क समझाया। वे मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं। उनकी परवरिश की ही देन है जो मैं आज सही रास्ते पर चल रहा हूं।
[नन्हीं उम्र में हुआ बिग स्क्रीन से प्यार]
मैं बचपन से ही खुद को बिग स्क्रीन पर देखना चाहता था। यह मेरे परिवार के माहौल का असर था। मैं चाचा धर्मेद्र और सनी भैया की फिल्में देखते हुए बड़ा हुआ हूं। उन्हीं की तरह मैं खुद को बड़े पर्दे पर देखना चाहता था। मुझे उनकी फिल्में अच्छी लगती थीं, लेकिन कभी उनके जैसा काम करने की इच्छा नहीं हुई। यही वजह है कि आज मैं अलग तरह की फिल्में कर रहा हूं।
[बहुत जल्दी बड़ा हो गया]
मैं बचपन में सोचता था कि जल्दी से बड़ा हो जाऊं, ताकि मुझ पर किसी की बंदिश न रहे और मैं अपने मन का हर काम कर सकूं, लेकिन आज मैं सोचता हूं कि जल्दी बड़ा नहीं होना चाहिए था। मैं बच्चों से कहूंगा कि वे मेरी तरह जल्दी बड़े होने की कोशिश न करें। अपने मम्मी-पापा की बातें सुनें, दिल से पढ़ाई करें और खूब सपने देखें।
[रघुवेंद्र सिंह]
[संयुक्त परिवार का शरारती बच्चा]
मैं संयुक्त परिवार में पला-बढ़ा हूं। मेरे घर में परंपरा, संस्कार, आदर्श आदि का बहुत ख्याल रखा जाता है। मुझे बचपन में ही परिवार की परंपराओं, रीति-रिवाजों और नैतिक बातों से अवगत करा दिया गया था। मुझे याद है, परिवार में हम सात बच्चे थे। मैं चचेरे भाई बॉबी के अधिक करीब रहा। उन्हीं के साथ खेलता-कूदता था और उन्हीं के साथ मिलकर शरारतें करता था। मैं परिवार का सबसे शरारती बच्चा माना जाता था। मैं सनी भैया से बहुत डरता था।
[पढ़ाई के लिए खूब डांट खायी]
मैं पढ़ने में औसत था। मेरा पसंदीदा विषय अंग्रेजी था। मम्मी-पापा चाहते थे कि मैं अपनी कक्षा का सबसे तेज छात्र बनूं। पढ़ाई के लिए मुझे मम्मी-पापा और टीचर से खूब डांट पड़ती थी। कभी-कभी तो मार भी पड़ती थी। सच कहूं तो मेरा मन खेलने में अधिक लगता था। मैं इंतजार करता था कि जल्दी से स्कूल में छुंट्टी हो और मैं खेलने के लिए भागूं। बॉबी के बिना बचपन में मैं कुछ नहीं करता था। हम दोनों एक जान दो शरीर थे। मैं बिल्डिंग के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलता था।
[मम्मी से कहता था मन की बातें]
मैं अधिकतर समय बॉबी के साथ रहता था, लेकिन अपनी मन की बातें मम्मी से कहता था। मुझे कुछ चाहिए होता था या कोई शिकायत करनी होती थी तो मैं मम्मी से रात में सबके सोने के बाद कहता था। उन्होंने मुझे सही और गलत के बीच फर्क समझाया। वे मेरी सबसे अच्छी दोस्त थीं। उनकी परवरिश की ही देन है जो मैं आज सही रास्ते पर चल रहा हूं।
[नन्हीं उम्र में हुआ बिग स्क्रीन से प्यार]
मैं बचपन से ही खुद को बिग स्क्रीन पर देखना चाहता था। यह मेरे परिवार के माहौल का असर था। मैं चाचा धर्मेद्र और सनी भैया की फिल्में देखते हुए बड़ा हुआ हूं। उन्हीं की तरह मैं खुद को बड़े पर्दे पर देखना चाहता था। मुझे उनकी फिल्में अच्छी लगती थीं, लेकिन कभी उनके जैसा काम करने की इच्छा नहीं हुई। यही वजह है कि आज मैं अलग तरह की फिल्में कर रहा हूं।
[बहुत जल्दी बड़ा हो गया]
मैं बचपन में सोचता था कि जल्दी से बड़ा हो जाऊं, ताकि मुझ पर किसी की बंदिश न रहे और मैं अपने मन का हर काम कर सकूं, लेकिन आज मैं सोचता हूं कि जल्दी बड़ा नहीं होना चाहिए था। मैं बच्चों से कहूंगा कि वे मेरी तरह जल्दी बड़े होने की कोशिश न करें। अपने मम्मी-पापा की बातें सुनें, दिल से पढ़ाई करें और खूब सपने देखें।
[रघुवेंद्र सिंह]
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