Friday 12 August 2011

आवाजों का साया..


बहुत पुरानी बात है लोगों की कहानियों में ये पुरानी बात आज भी ताज़ा हो उठती है और अगर महसूस किया जाये तो छन-छन की उस आवाज़ का साया हमारे आस-पास मंडराने लगता है।

दरअसल ये आवाज़ पिछल-फैरी के आने की होती थी, लोग अपने बंद दरवाज़ों से ही उसके अपने आस-पास होने का अनुमान लगा लिया करते थे. जो पिछल-फैरी के होने का वजूद हुआ करता था उसकी छन-छन चलने की आवाज़ लोगों के मन में दहशत पैदा करती थी और अगर दादा-दादी की कहानियों में उसे सुने तो बखूबी उस छवि का भी जिक्र किया जाता है कि वो दुल्हन जैसे कपडे पहने होती है, अपने बड़े से आकर के साथ उसकी पायल की आवाज़ कानों में ऐसे गूंजती है जैसे उससे भरी आवाज़ कभी सुनी ही न हो, वो लोगों को बहकाती है, आकर्षित करती है, बहकी-बहकी आवाजों से मदद का वास्ता देकर अपने पास बुलाती है।

ऐसे में उसकी आवाज़ जो दिमाग पर कब्ज़ा कर लेती है उससे कई लोग मारे भी जाते है. लेकिन उसका होना और न होना ऊपर वाले की बनायीं इस कुदरत से ही चलता है दिन में चलती इन तंग गलियों में जितना शोर होता है उतना ही रात के साये में ये गलियां गुप्त अंधेरो में खो जाया करती हैं और जिस तरह अँधेरा अपने आप अपनी जगह बनता है उसी तरह ये छवियाँ भी उसी के बीच अपना वजूद पक्का करती हैं।

ऐसे में उसके दिखने को लेकर इतनी चर्चा नहीं रही जितना की उसकी पायल की छन-छन-छन आवाज़ का डर लोग अपने दिलों में लेकर जीते हैं.
http://mastano-ka-mehkma.blogspot.com
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