Tuesday, 22 November 2011

यूँ दिल के एहसासो को...



 
 
 
 
यूँ  दिल के एहसासों  को गीतो में ढाल लूंगी
मिली थी जब तुमसे उस पल को बाँध लूंगी 


वक़्त की रफ़्तार थमने ना पाए अब 
इन जीवन की उलझनो में कुछ सुलझने सँवार लूंगी 

लावे सी पिघल कर बह क्यों  नही जाती है यह ख़ामोशी 
ख़ुद को ख़ुद में समेटे कब तक यूँ तन्हा मैं चलूंगी 

कुछ सवाल हैं सुलगते हुए आज भी हमारे दरमियाँ 
कुछ दर्द ,कुछ आहें दे के इनको फिर से दुलार लूंगी 

दे दिया अपना सब कुछ तुझे तन भी और मन भी 
अब कौन सी कोशिश से अपने बिखरे वजूद को निखार लूंगी 

काटता नही यह सफ़र अब यूँ ही बेवजहा गुज़रता हुआ 
एक दास्तान फिर से तुझसे ,अपने प्यार की माँग लूंगी!! 

मत बांधो प्यार को किसी रिश्ते की सीमाओं में 
बस एक तेरे नाम पर अपना यह जीवन गुज़ार लूंगी 

बहुत थक चुकी हूँ अब कही तो सकुन की छावँ मिले 
अपने इन रतज़गॉं को अब तेरे सपनो से बुहार लूंगी !! 
 

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