Tuesday 30 August 2011

Man Mohan Singh as a Fire Fighter

राजधानी के मुख्य फायर स्टेशन पर घन्टी बजती है और मुखिया फोन उठाते हैं।
“भारत भवन में आग लग गयी है। जल्दी आइये।”
अमां कहां पर है यह भारत भवन, कहां आयें
“जी हां,यह जन्तर मन्तर और राम लील मैदान के बीच मे है”
मुखिया मनमोहन जी चल पड़ते हैं अपनी लाल फायर इन्जिन के साथ
बढिया लाल रंग की नयी फायर इन्जिन है
सन् 2009 में नयी खरीदी थी
साथ में सहायक के रुप में पूराने खुर्राट दादा प्रणब हैं
मध्य रात्रि के समय जा पहुंच ते हैं भारत भवन के सामने
पुरानी इमारत है और धू धू कर जल रही है
मनमोहन जी सर खुजाते हुये पूछते हैं
भाई लोग बतायें क्या किया जाये
प्रणब दादा जो कि सबसे अधिक अनुभवी है सबसे पहले फूटते हैं
इस आग पर पानी डालिये
पानी डालने से आग बुझ सकती है
तभी दूसरे सहायक चिदाम्बरम जी कहते हैं कि
पहली प्राथमिकता तय की जाये तब ही तो उपाय या जुगत सही बैठेगी
पहले यह तय कर लीजिये पहले क्या बचाना है
भवन या भवन वासी
माल मत्ता या लोग
मुखिया जी ने ने कहा लोग बचाये जायें
वोट बचाने अधिक जरूरी हैं
अल्मारियां व फर्नीचर तो वोट नहीं देते है।
एक एक पाईप अलग अलग साथी
को पकड़ा कर पानी बरसाने की हिदायत दी।
कहीं से भी पानी जब नहीं आया तो मुखिया साहब बड़े झुंझलाये
“क्या हुआ अब पानी क्यों नहीं आ रहा है”
पता चला सारे टैंकर खाली हैं
एक छुटभैये सहायक ने कान में फुस्फुसाते हुये कहा
“साहब,एक टैंकर भरने का ठेका कालमाडी जी को दिया गया था और एक राजा को।
दोनो ने सारा पानी अपने अपने घरों की टंकी में भर लिया और टैंकर खाली छोड़ दिये।
तो साहब अब तो भारत भवन की आग भगवान भरोसे ही बुझेगी”।
अब सेक्युलर संविधान के तहत् भगवान को पुकारने में भी परेशानी हो रही थी।
कौन से भगवान को पुकारा जाये,किधर मुंह कर गुहार लगायी जाये।पूरब या पच्छिम।

खैर भारत पर सारे ही भगवान हमेशा से ही कुछ विशेष मेहरबान रहें हैं। एक शायर ने भी लिखा है कि
“कुछ तो बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है, दौरे दुश्मन जहां हमारा”
अचानक बिन मौसम ही जोरों से बारिश शुरु हो गयी और भारत भवन स्वाहा होने से बच गया।
जान माल व लोग दोनो ही विशेष किसी नुक्सान से बच गये।
अब जब काम पुरा हो गया चाहे भगवान भरोसे ही तो बारी प्रेस कांफ्रेन्स की थी।
पांच विशिष्ट समाचार पत्रों के सम्पादकों की मण्डली बुलाई गयी।
मनमोहन सिंह जी ने सारा अग्निशमन का सारा श्रेय युवराज को देते हुये कहा कि उन्हीं की सारी सूझ बूझ है।
हमें तो बिना पानी आग बुझाने की कला अच्छे से आती है।
इसके पहले रामलीला मैदान में आग लगी थी। वह भी हमने पानी से नहीं डण्डे से आग बुझायी थी।
अब देखो हमारी इटालियन फायर इन्जिन का कमाल कि भारत भवन की आग भी हमने खाली टैंकरों से ही बुझा दी। एक अड़ियल किस्म के सम्पादक ने प्रश्न कर दिया कि “साहब ये जो टैंकर खाली थे इसके विषय में भी आप कुछ कहिये। किस की भूल का परिणाम है यह”। अब इस प्रश्न पर वहां उपस्थित प्रणब दादा ने उत्तर दिया “देखिये आप मन मोहन सिंह जी की भूल का प्रश्न उठा कर उनकी कार्य कुशलता पर सन्देह कर रहें हैं। इनकी कार्य कुचलता पर प्रश्न नहीं उठाइये। एक दर्जन नामी गिरामी विश्व विद्यालयों से इन्होंने अग्निशमन के विषय मे डाक्टरेट हासिल की है। वह भी पूरी इमानदारी के साथ परीक्षा पास करके। इन से अधिक तकनीकी दक्षता अन्य किसी में नहीं है।“
दूसरे सम्पादक ने पुछा” डिग्रीयां तो ठीक लेकिन ये श्रीमान राजा एव कालमाड़ी जिनको ठेका दिया गया ,उनके विषय में क्या तहकीकात की गयी थी”।
तहकीकात शब्द से प्रणब दा सकते में आगये। बौखला कर चिल्ला पड़े अरे भई वह तो चुइंगम का मामला था।
मनमोहन जी ने स्थिति को सम्भालते हुये कहा कि “भई यह तो युनियन का मामला है कि किसको किस चीज का ठेका दिया जाये और किस को नहीं। अगर मुखिया की कुर्सी सही सलामत रखनी हो तो युनियन वालों को तो खुश रखना ही पड़ेगा”
मनमोहन सिंह जी ने सभा से रुखसत होते हुये कहा कि भाइयों काकटेल पार्टी अटेण्ड कर ही विदा लीजियेगा बाकी आगे की प्रेस कांफ्रेन्स मेरे साथी दिग्गी राजा सम्भालेंगे।
अब यह तो मेरा ही दोष है कि मुझे मनमोहन जी के हाथों में बांसुरी गिखायी दे रही थी और शक्ल पर सम्राट नीरो
का अक्स नजर आ रहा था। ”

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