Tuesday 23 August 2011

अन्ना से निपटने की रणनीति


अन्ना हजारे आठ दिनों से अनशन पर हैं लेकिन सरकार की रणनीति कुछ और ही लगती है.. 
जनलोकपाल पर अप्रैल में अन्ना से पहले दौर में मुंह की खाने के बाद सरकार इस दौर को हर हाल में जीतना चाहती है. अब तक काफी फजीहत झेल चुकी सरकार खुद को विजेता की तरह देखना चाहती है.

इसलिए सरकार रुख में खास नरमी नहीं दिखा रही है. सरकार की कोशिश थकाओ और भगाओ की हो गई है.

सरकार अन्ना हजारे को रामलीला मैदान में अनशन के लिए 15 दिन की अनुमति दे चुकी है और वो कोई हड़बड़ी भी नहीं दिखाना चाहती.
थकाओ और भगाओ

वक्त बिताओ...थकाओ और भगाओ की नीति को ध्यान में ही रखकर सरकार ने लोकपाल विधेयक पर चर्चा के लिए बुधवार को देर से सर्वदलीय बैठक बुलाई है.

ये बैठक दोपहर साढ़े तीन बजे होगी. सरकार को लगता है कि तब तक अन्ना की तबितय बिगड़ चुकी होगी और उन्हें अस्पताल भेजने की नौबत आ चुकी होगी.

अगर नहीं तो बैठक के बाद जिन मु्द्दे पर सहमति बनेगी उसे संशोधन के तौर पर मौजूदा लोकपाल बिल में शामिल कर लिया जाएगा या फिर जोड़ लिया जाएगा.

इससे सरकार की इज्जत भी बच जाएगी और वाहवाही भी मिलेगी.

सरकार इस रणनीति के साथ-साथ ये भी सोच रही है कि जो लोकपाल बिल स्टैंडिग कमिटी के पास है उसमें कुछ बदलाव कर सभी को खुश कर दिया जाए.

समिति के प्रमुख अभिषेक मनु सिंघवी ऐसा कह भी चुके हैं कि बदलाव चौंकाने वाले हो सकते है. ऐसा करके सरकार वाहवाही लूट सकती है. साथ ही दामन पर दमन का दाग भी नहीं लगेगा और सिविल सोसायटी की जगह क्रेडिट भी मिल जाएगा.
अधिकृत प्रतिनिधि नहीं

उमेश सांरगी, भैयूजी महराज और श्री श्री रविशंकर के जरिए सरकार ये भी जताने की कोशिश कर रही है कि वो बातचीत कर रही है लेकिन अभी तक सरकार की ओर से अधिकृत रूप से कोई प्रतिनिधि टीम अन्ना के पास नहीं आया है.

सरकार का मानना है कि समय के साथ-साथ रामलीला मैदान में लोगों का आना कम होगा. लोग दूसरे काम में उलझेंगे. इससे आंदोलन की ताकत कम होगी.

सरकारी रणनीतिकारों का मानना है कि 73 साल के अन्ना इस उम्र में ज्यादा दिन तक अनशन नहीं कर सकते. डॉक्टरों ने उन्हें लोगों को संबोधित करने से मना कर ही दिया है.

उनका वजन करीब साढ़े पांच किलो घट चुका है. ब्लड और यूरीन में कीटोन बढ़ गया है. डॉक्टरों ने उन्हें आराम करने की सलाह दी है. उन्हें धूप में न निकलने और लोगों को संबोधित न करने की बात कही है.

डॉक्टरों ने ये भी चेतावनी दी है कि अगले 24 से 48 घंटे उनके लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं.

तबितय ज्यादा बिगड़ने पर इन्हें अस्पताल मे भर्ती कराना पड़ेगा तब आंदोलन खुद ब खुद कमजोर पड़ जाएगा.

ऐसे में जब खुद अन्ना रामलीला मैदान में नहीं रहेंगे तो लोग भी वहां से चले जाएंगे. लोग अस्पताल में तो उनके साथ नहीं जाएंगे और न ही अस्पताल के बाहर भीड़ लगाने की इजाजत दी जाएगी.

अन्ना के मैदान में न रहने पर मीडिया के लोग भी मैदान से मार्च कर जाएंगे और जब टीवी पर से ये मुद्दा हटा तो फिर सरकार खुद मैदान मार लेने का दावा कर सकती है.

ऐसे में गिरफ्तारी के समय दमन का आरोप झेलने वाली सरकार विपक्षी और दूसरे हमले से भी बच जाएगी.

सरकारी तंत्र का ये भी मानना है कि शुरुआत में जो समर्थन उन्हें मिला है वो धीरे-धीरे कम होता जाएगा.

बीच में शनिवार-रविवार और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी होने के कारण जो लोग रामलीला मैदान में उमड़ पड़े थे. दफ्तर खुल जाने के बाद लोग यहां आना बंद कर देंगे.

बारिश, रहने और खाने-पीने की परेशानी के कारण भी लोग यहां से हटना शुरू कर देंगे. और फिर लोग रोजी-रोटी, काम धंधा छोड़कर कब तक अन्ना के साथ रहेंगे.

लेकिन फिलहाल जिस हिसाब से लोग उमड़ रहे हैं. देश भर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन हो रहा है. लोग सांसदों और मंत्रियों के घरों के बाहर धरना दे रहे हैं उससे नहीं लगता कि सरकार की रणनीति कामयाब होने जा रही है.
हो सकती है तीखी प्रतिक्रिया
आंदोलन कमजोर होने के बजाए मजबूत ही  होता जा रहा है. लोगों का कारवां बढ़ता ही जा रहा है. खुफिया रिपोर्ट में भी कहा गया है कि आंदोलन तो फिलहाल शांत है लेकिन अन्ना को कुछ होने की हालत में स्थिति बिगड़ सकती हैं.

लोगों में तीखी प्रतिक्रिया हो सकती है और लोग हिंसक हो सकते हैं ऐसे में हालात को संभालना मुश्किल हो सकता है.

वैसे अन्ना की गिरती सेहत को देखकर टीम अन्ना  के रुख में भी नरमी आई है. कुछ मुद्दों पर वो लचीला रास्ता अपनाने को तैयार लगते हैं. टीम की ओर से कहा गया है कि अगर सरकार मौजूदा लोकपाल बिल वापस ले लेती है, जनलोकपाल को पेश कर देती है और उस पर बहस करवाती है तो अन्ना अनशन तोड़ने पर विचार कर सकते हैं.
लेकिन सरकार ने अब तक जिस तरह का रवैया दिखाया है उससे लगता नहीं कि वह टीम अन्ना के सामने झुकने को तैयार है.


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