Tuesday, 25 October 2011

मुहब्बत का दिया जला कर तो देखो .

आस्था का तेल 
और दिल की बाती 
यही है सच ही में 
मुहब्बत की थाती 
स्नेह पगे  फ़ूल 
खिला कर तो देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो .

बाती से मिले बाती 
तो हो रोशनी प्रज्ज्वलित 
अपेक्षाएं हों  सीमित 
तो प्रेम हो विस्तृत 
समर्पण को ज़रा 
विस्तार दे के देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो .

ऐसे दीयों की जब 
सजी हो दीपमाला 
हर दीप होगा अमर 
नहीं चाहिए होगी हाला 
इसमें  तुम खुद को 
डुबा कर तो देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो ..

No comments:

Post a Comment