वो सोच सोच कर रखती है
हर बात मुझे बताने के लिए
मेरे हां, अच्छा कहने भर से
सार्थक हो जाता है उसका याद रखना
बात बड़ी या छोटी कोई फर्क नहीं
बस बात होनी चाहिए जिससे
वो सुन सके और कह सके मुझसे
थोड़ी ज्यादा देर तक
जबसे महसूस किया है उसने
मैं उसके हाल चाल पूछता हूँ
और वो मेरी तबियत पूछती है
और पसर जाता है सन्नाटा
दोस्तों के बीच जिस बेटे की बातें
ख़त्म नहीं होती घंटों तक
अपनी माँ से बात करने पर
विषय शब्द ढूंढें नहीं मिलते
पर माँ तो सहेजती है हर घटना
हर विषय हर रंग और हर स्वर
जिससे एक फोन के कटने से
दूसरा फोन आने तक व्यस्त रहती है
No comments:
Post a Comment