Thursday, 8 December 2011

क्‍या है सोशल नेटवर्किंग पर अभिव्‍यक्ति की आजादी के मायने?


सोशल नेटवर्किंग पर लगाम कसने की खबर से कोहराम मचा हुआ है। राजनीतिक व सामाजिक स्तर पर बहस जारी है। केन्द्रीय दूरसंचार और सूचना टेक्नोलॉजी मंत्री कपिल सिब्बल ने जब यह कहा कि उनका मंत्रालय इंटरनेट में लोगों की छवि खराब करने वाली सामग्री पर रोक लगाने की व्यवस्था विकसित कर रहा है और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स से आपत्तिजनक सामग्री को हटाने के लिए एक नियामक व्यवस्था बना रही है। हडकंप मचना जाहिर सी बात है।
हालांकि उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार का मीडिया पर सेंसर लगाने का कोई इरादा नहीं है। सरकार ने ऐसी वेबसाइट्स से संबंधित सभी पक्षों से बातचीत की है और उनसे इस तरह की सामग्री पर काबू पाने के लिए अपने पर खुद निगरानी रखने का अनुरोध किया। लेकिन सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स के संचालकों ने इस बारे में कोई ठोस जवाब नहीं दिया।
सवाल उठता है कि आज सरकार की सोच को सरकारी नजरिये से देखते हुए, उस सोच के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं। लेकिन वहीं सवाल यह भी है कि क्या अभिव्यक्ति की आजादी के मायने यह नहीं कि फेसबुक, ट्विटर, गूगल, याहू और यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट्स को लोगों की धार्मिक भावनाओं, विचारों और व्यक्तिगत भावना से खेले तथा अश्लील तस्वीरें पोस्ट करें? उनके व्यक्ति विशेष के उपर असंवैधानिक बातें/फोटो डाले? देखा जाये तो सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर जो कुछ हो रहा है क्या उसे अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर स्वीकार कर लिया जाये? थोड़ी देर के लिए इसे राजनीतिक दृष्टिकोण से हटा दिया जाये और सामाजिक पहलू को सामने रख देखा जाये तो क्या हमारा व आपका चेहरा हो और नग्न धड़ किसी और का हो? अगर यह स्वीकार है तो फिर गलथोथरी करते रहिये। क्योंकि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स पर जो खतरा है वह है इस पर तेजी से अपसंकृति का फैलना व अश्लील सामग्रियों का साम्राज्य कायम होना।
इस बात से इनकार नहीं कि जा सकता है कि अंतरजाल के माध्यम से आज सोशल नेटवर्किंग का तिलस्मी दुनिया स्थापित हो चुकी है। वैश्‍वीककरण के दौर में सोशल नेटवर्किंग का मायाजाल दिनोंदिन अपने जाल में लोगों को फांसता ही जा रहा है। इसका नशा बच्चे, बूढ़े़ और जवानों पर सर चढ़ बोल रहा है। खासकर युवाओं के उपर इसका नशा इस कदर चढ़ चुका है कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। घंटों इससे चिपके रहते हैं। सोशल नेटवर्किंग को संवाद अदायगी के तौर पर देखा जा रहा है, जहाँ जनांदोलन, सामाजिक मुद्दों व सत्ता परिर्वत्तन के नाम पर गोलबंदी की दुहाई भी दी जा रही है। इसका स्वप्न काफी मीठा है। इसके मिठास में खास ‘‘मीठापन’’ है वह है सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से अश्लीलता व अपराध का बढ़ता मायाजाल, जो अपसंस्कृति को खुल्लेआम बढ़ावा दे रहा है।
संवाद के आदान-प्रदान का कारगर हथियार सोशल नेटवर्किंग है। इस पर कोई खास प्रतिबंध नहीं है। किसी का डर-भय नहीं है। बेटा अपने बाप से छुपाकर, बाप, बेटे से तो पति, पत्नी से और पत्‍नी, पति से यानी हर कोई इस तिलस्म से चोरी छुपे या खुल कर जुड़ना चाहता है। और इस जुड़ाव के केन्द्र में ज्यादातर युवक-युवतियां है। अपने शरीरिक आर्कषण से महिलाएं, पुरुषों को लुभाती व न्यौता देते दिखती हैं तो वहीं पुरुष भला क्यों पीछे रहे वह भी अपने शरीरिक आर्कषण से महिलाओं को लुभाते व न्यौता देते दिखते हैं। सोशल नेटवर्किंग पर फर्जीवाड़ों का जमावड़ा है। उलटे-सीधे पोस्ट की आड़ में ये युवक-युवतियां फर्जी भी है और हकीकत में भी। इनके आर्कषण का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके दोस्तों की संख्या हजारों में होती है और उनके पेज को पसंद करने वालों की संख्या भी हजारों का आंकड़ा पार होता है। यह सब सुंदर चेहरे जुड़ाव के कारण बनते हैं और उनके बीच अश्लील सामग्रियों का अदान-प्रदान शुरू हो जाता है।
सोशल नेटवर्किंग को अपसंस्कृति के परिचायक के तौर पर भी देखा जा सकता हैं। पोर्न मसाला यहाँ उपलब्ध है बस आपको उसके सर्च में जा कर तलाशना होगा। परिणाम में ढेर सारे विकल्प सामने आ जायेंगे। उदाहरण के लिए सबसे चर्चित नेटवर्किंग साइट फेसबुक की बात करें तो यहाँ हर ‘नजारा’ उपलब्ध है। नजारा जो परोसा जा रहा है। उसे देखने के लिये सर्च में जाना होगा। सेक्स को सर्च करें, बस विकल्प सामने होगा। मसलन, फेसबुक लेटनाइट टाक/रिलेशनशिप/मैरेज/सेक्स आदि-आदि पेज। बात कीजिये। फोटो देखिये व शेयर कीजिये। बात समझ में आ जायेगी कि इसके माध्यम से अश्लीलता को सहजता से देखा समझा जा सकता है। हांलाकि यह सेक्स शिक्षा की भी दुहाई देता मिल जायेगा। केवल फेसबुक ही नहीं कई सोशल नेटवर्किंग साइट हैं, जिनका दोस्त बनो का संदेश मेल के माध्यम से आता है। सुंदर-आर्कषक महिला या लड़की फोटो प्रोफाइल के साथ फ्रेंड रिक्वेसट भेजती हैं कि फलाना सोशल नेटवर्किंग साइट से जुड़े और मुझसे दोस्ती करें। और फिर सिलसिला चल पड़ता है।
एक समय सेटेलाइट टीवी के माध्यम से देर रात में विदेशी चैनलों से परोसे जाने वाले पोर्न सामग्री बुद्धू बक्सा के जरिये घर-घर पहुंचा तो बवाल हो गया। लोग व सरकार हरकत में आयी। रोक लगाने की प्रक्रिया हुई। और आज बुद्धू बक्सा के बाद प्रोर्न सामग्री कम्प्यूटर के माध्यम से रीडिंग टेबल पर आ चुका है। लेकिन इस बार इसे रोक पाना सरकार के बूते की बाहर की बात लगती है। यह अलग बात है कि कुछ तकनीकी व्यवस्था कर सरकारी / गैरसरकारी दफ्तरों में सोशल नेटवर्किंग को देखने पर रोक लगा दी गयी है। यह रोक कुछ मीडिया हाउसों में भी है। यह रोक शुद्ध रूप से फैलते अपसंस्कृति के दुष्परिणाम को देख कर उठाया गया कदम प्रतीत होता है। अपसंस्कृति परोसते इन सोशल नेटवर्किंग के पेज लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि फेसबुक लेटनाइट टाक / रिलेशनशिप / मैरेज/ सेक्स आदि के अश्लील पेज को पसंद करने वालों की संख्या बीसियों हजार तक पहुंच गयी हैं, दिनों दिन इसके पेज पर जाकर इसका रस्वादन करने वालों की संख्या बढ़ती ही जाती है।
सोशल नेटवर्किंग पर अपसंस्कृति परोसने का मामला केवल पोर्न तक ही सीमित नहीं है बल्कि यहाँ संस्कृति को लांघते हुए भी देखा जा सकता है। राजनेताओं/ खिलाड़ियों आदि की तस्वीरें इस तरह पोस्ट की जाती है जो भारतीय संस्कृति-परंपरा के कतई परिचायक नहीं प्रतीत होती हैं। सोशल नेटवर्किंग साइट पर लड़के-लड़कियों के पोस्ट पर पोर्न तस्वीर पोस्ट करना आम बात है। फ्रेंड रिक्वेस्ट से सोशल नेटवर्किंग साइट पर दोस्त बने दोस्त एक दूसरे के पोस्ट पर पोर्न तस्वीर, खूब पोस्ट करते हैं, जिसके पेज पर पोर्न तस्वीर पोस्ट होता है, उसे तब पता चलता है जब कोई उसका करीबी उसे सूचित करता है कि देखों तुम्हारे पोस्ट में पोर्न तस्वीर पोस्ट है। हालांकि ऐसे पोस्ट को हटाने का विकल्प मौजूद है लेकिन तब तक वह पोर्न पोस्ट उसके लिस्ट के सभी दोस्तों के पास पहुंच जाता है।
कई ऐसे मामले आये हैं जहाँ लड़की के नाम से उसके दोस्त एकाउंट खोल देते हैं और उसकी तस्वीर पोस्ट कर, अश्‍लील बातें/फोटो शेयर करने लगते हैं, जिस लड़की के नाम से एकाउंट होता है उसे इस बात का पता तब चलता है जब उसे उसके ही दोस्त बताते हैं या कमेंट पास करते हैं। फेक एकाउंट खोलने की खबर आये दिन मीडिया में आती रहती है। साइबर क्राइम का यह मामला अखबारों की सुर्खियां तक बन जाती है। यह तो हुई पोर्न की बात, सोशल नेटवर्किंग साइट अपराध को भी जमकर बढ़ावा दे रहा है। पिछले दिनों भिलाई के एक इंजीनियरिंग कालेज के छात्र के चैट किए गए तमाम शब्द की कॉपी कर हैकर ने उसके पिता को भेज दी थी। भेजने से पहले हैकर ने ब्लैकमेल की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनी। इस साइट के जरिए रोज किसी न किसी रूप में लोग साइबर क्राइम के शिकार हो रहे हैं।
देखा जाये तो लब्बो-लुआब यह है कि सकारात्मक के बीच सोशल नेटवर्किंग साइट तेजी से नकारात्मकता यानी सेक्स/अपराध का 

एक केन्द्र बन गया है। समाज के सेलिब्रेटी के नाम से फर्जी प्रोफाइल तैयार करने की घटनाएं भी आम होती जा रही हैं। भूमंडलीकरण के दौर में सोशल नेटवर्किंग की अपनी दुनिया स्थापित हो चुकी है। जहाँ कोई कायदा-कानून नहीं। इसकी अपनी संस्कृति है और दुख इस बात का है कि इस संस्कृति की राह को पढ़ें-लिखें वर्ग ने ही पकड़ रखा है।


लेखक संजय कुमार वरिष्‍ठ पत्रकार तथा आकाशवाणी पटना में समाचार संपादक के पद पर कार्यरत हैं.

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