आज चैतन्य का जन्मदिन है | मेरे लिए वो दिन जबसे जीवन को एक नए रंग और ढंग से समझना और जीना सीखा | सच में बात सिर्फ कहने भर को ही नहीं है, माँ होने और माँ होकर जीने के मायने बहुत गहरे हैं | एक बच्चा आपके जीवन में आता तो दुनिया के हर बच्चे से प्रेम हो जाता है | बचपन से प्रेम हो जाता है |
आज एक पुरानी कविता साझा कर रही हूँ| अब मैं माँ को समझती हूँ.....! जो मुझे महसूस हुआ शायद संसार हर बेटी वही महसूस करती है जब वो स्वयं माँ बनती है ......
चैतन्य |
मैं न थी माँ के इतने करीब
हर नसीहत लगती थी अजीब
वक़्त ने नसीहतों का अर्थ समझाया
जिनसे संस्कार-अनुशासन पाया
मैं अब रोज़ उसे नयी सीख देती हूँ...अब मैं माँ को समझती हूँ....!
माँ की स्नेह भरी थपकी
मेरी रूखी सी झिड़की
आधी रात हो गयी अब तो
तुम भी सो जाओ ना माँ
क्यों सारी रात मैं उसके
सिरहाने बैठी काटती हूँ ?.....अब मैं माँ को समझती हूँ.....!
तुम नहीं समझोगी माँ
जाने कितनी बार कहा
अधूरे-तुतलाते शब्दों का भी
मैं अब अर्थ निकालती हूँ ?....अब मैं माँ को समझती हूँ ....!
तपती दुपहरी, दहलीज़ पर खड़ी
इंतजार करती चिंता में पड़ी
झट से बस्ता हाथ में लेकर
उसके माथे का पसीना पौंछती हूँ......अब मैं माँ को समझती हूँ ....!
अब मैं भी एक माँ हूँ तो
माँ का वो स्वरुप स्वयं मुझमे समा गया
मुझे भी माँ की तरह जीना आ गया
तभी तो माँ अब तुम मेरी प्रेरणा होप्रेरणा , बिन कहे एक बच्चे का मन पढ़ने की....!
प्रेरणा , उसे इन्सान के रूप में गढ़ने की...!
आप चैतन्य को अपनी शुभकामनायें यहाँ भी दे सकते हैं .....
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