फिल्म ' दी डर्टी पिक्चर ' देखी......... ज़िन्दगी जब मायूस होती है तभी महसूस होती है.....! यह इसी फिल्म का एक संवाद है जो उस लड़की के मन में आता है जो रुपहले परदे पर चमकने के सपने लिए ग्लैमर की दुनिया में आती है और हर तरह के समझौते करते हुए अपने आपको स्थापित भी कर लेती है पर चकाचौंध भरी इस दुनिया में शोषित होते हुए शिखर पर पहुँचने वाली सिल्क स्मिता एक समय इतनी अकेली हो जाती है कि आत्महत्या कर लेती है | कुछ विचार, कुछ प्रश्न जो इस फिल्म को देखने के बाद मन में आये....!
वे चेहरे जो सिनेमा के रुपहले परदे की चमक बने रहते हैं उनके वास्तविक जीवन में ऐसा मर्मान्तक अँधेरा क्यों होता है ...? क्यों संबंधों के अर्थपूर्ण भाव जिन्हें हम आस्था, समर्पण और विश्वास कहते हैं शो बिजनेस से निर्वासित रहते हैं..... ? क्यों ग्लैमर के आसमान में उड़ने वाले हर सितारे को रिश्तों की पवित्रता और जीवन की चेतना से समझौता करके ही आगे बढ़ना होता है ...? कोई विजयलक्ष्मी स्वयं सिल्क बनती है या फिर बनाई जाती है ....?
कई फ़िल्मी चेहरों का जीवन साक्षी है कि प्रसिद्धि और सम्पन्नता के आकाश पर झिलमिलाने वाले सितारों की झोली में अकेलापन और अवसाद न चाहते हुए भी आ गिरता है | भीड़ में रहने और जीने के बावजूद भी सूनेपन की त्रासदी इनके जीवन का हिस्सा बन ही जाती है | ऐसा अकेलापन जो ये स्वयं नहीं चुनते , बस समय बदलते ही अपने आप एक सौगात की तरह इन्हें थमा दिया जाता है | इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कभी अकेले रहने को तरस जाने वाले सितारों के जीवन में एक समय ऐसा भी आता है, जब कोई खोज खबर लेने वाला भी नहीं होता | यह भी उनके जीवन का एक संघर्ष ही होता है पर कभी इन्हें हेडलाइंस नहीं बनाया जाता , क्योंकि समाचार भी सफलता के ही बनते हैं सन्नाटे और अवसाद भरे जीवन को यहाँ कौन पूछता है ..?
यह एक ऐसी दुनिया है जहाँ काम है तो सब कुछ है | लेकिन जब काम नहीं होता तो कुछ नहीं होता | ना दोस्त, ना चाहने वाले, ना परिवार वाले, ना इंटरव्यू और ना ही सुर्खियाँ | यहीं से शुरू होता है नाटकीयता भरी ज़िन्दगी से परदे का उठना और हकीकत की दुनिया से सामना करने का सिलसिला | ऐसे में मायावी दुनिया में नाम कमा चुके चेहरे के लिए यह स्वीकार करना बहुत दुखदायी होता है कि अब उन्हें खास नहीं आम इन्सान बनकर जीना है | चूँकि सफलता कि सीढियां चढ़ते हुए हर निजी और सामाजिक रिश्ते को निवेश की तरह लिया जाता है, ऐसे समय पर इनके पास कोई अपना कहने को भी नहीं होता |
स्टारडम का आभामंडल ही कुछ ऐसा है की यहाँ हमेशा दिखते रहना ज़रूरी है | परदे पर उपस्थिति बनी रहे इसके लिए भी लगातार संघर्ष करना होता है | सुर्ख़ियों में रहने के हर तरह के समझौते यहाँ मान्य हैं | हर हाल में अपनी छवि और स्थान को बचाए रखने का तनाव आतंक की तरह होता है | बाहरी दुनिया को दिखने वाले दंभ को छोड़ दें तो अधिकतर सितारे आत्मकेंद्रित और अकेलेपन का जीवन ही जीते हैं| परिस्थितियां इतनी विकट हो जाती हैं कि लाखों लोगों के मन में घर बनाने वालों के मन की पीड़ा को साझा करने वाला भी कोई नहीं होता |
यही वे परिस्थितियाँ होती हैं जब कोई नींद की गोलियां खा लेता है, फांसी के फंदे पर लटक जाता है या फिर ऊंची ईमारत से छलांग लगा देता है | हम सबको परदे पर ज़िन्दगी कई अच्छे बुरे रंग दिखाने वाले सितारे जीवन के इस बेरंग दौर में खुद से ही हार जाते हैं | इसकी एक अहम् वजह यह है कि उनके पास एक आम इन्सान की तरह कोई भावनात्मक सपोर्ट सिस्टम नहीं होता | रिश्तों की वो बुनियाद इनके जीवन में कभी बनती ही नहीं जो बिखरती ज़िन्दगी को मजबूती से थाम ले |
पहले परदे पर दिखने के लिए संघर्ष और फिर दिखते रहने के लिए | शारीरिक और मानसिक दवाब इतना कि चमचमाती रौशनी के बीच भी मन में दर्दनाक अँधेरा | कभी कभी तो लगता है कि सफलता के शिखर पर विराजे हमारे फ़िल्मी सितारों में न जाने कौन क्या कीमत चुका रहा है ..? कौन चुपचाप टूट रहा है .... ? किसके बाहर से चमकते जीवन के भीतर स्याह अँधेरा है ....?
पहले परदे पर दिखने के लिए संघर्ष और फिर दिखते रहने के लिए | शारीरिक और मानसिक दवाब इतना कि चमचमाती रौशनी के बीच भी मन में दर्दनाक अँधेरा | कभी कभी तो लगता है कि सफलता के शिखर पर विराजे हमारे फ़िल्मी सितारों में न जाने कौन क्या कीमत चुका रहा है ..? कौन चुपचाप टूट रहा है .... ? किसके बाहर से चमकते जीवन के भीतर स्याह अँधेरा है ....?
aap bina izazat ke ye lekh mere blog se utha laye hain.... aage behtar hoga ye na karen
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