जीवन जीने की कला मिला तुम्ही से मीत
लगता है इस मोड़ पर बढ़ा और भी प्रीत
गहरे होते भाव जितने होते उतने ही गंभीर
बिना शब्द ही कह गए यह नैनो की तासीर
ह्रदय सदा ही ढूँढता मिलन हुआ संयोग
कहने को तो है बहुत पर कैसे सहूँ वियोग
स्त्रोत प्रेरणा का मिला कहूं न सृजनहार
दिशा दिखाया आपने हुआ यही उपकार
मन का दर्पण खोलकर हुए जो भाव विभोर
कुसुम कामना सँग लिए सदा मीत सँग भोर
-कुसुम ठाकुर-
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