Thursday, 21 June 2012
Monday, 18 June 2012
Saturday, 16 June 2012
क्यूँकी मैं पिता हूँ..............!
पिता, जीवन की पृष्ठभूमि हैं । पिता, बच्चों के लिए शक्ति स्तम्भ हैं , जीवन की धूप से सुरक्षित रखने वाली छाँव हैं । पिता बच्चों के लिए आदर्श होते हैं । पिता का साथ वो संबल देता है जो जीवन भर के लिए स्वयं को सहेजने की शक्ति भर देता है बच्चों में । (आज प्रस्तुत है यह कविता जो मेरे ब्लॉग पर पहले भी प्रकाशित हो चुकी है | )
क्यूँकी मैं पिता हूँ.......!
मेरे हिस्से ना आया
तुम्हारा गीला बिछौना, रातों का रोना
ना ही आईं थपकियाँ, न लोरी, न पालने की डोरी
न आंसू बहाना, ना तुम्हें गोदी में छुपाना
न साज-संभाल करने वाले हाथ, न ही कोई उनींदी रात
क्यूँकी मैं पिता हूँ..............!
मेरे हिस्से आया
अल-सुबह घर से निकलना
कुछ तिनकों की तलाश में
एक नीड़ सहेजने की आस में
ताकि सांझ ढले जब लौटूं
तो गुड़िया, मुनिया और छोटू
सबके चहरे पर हो खिलखिलाहट
सुनकर मेरे कदमों की आहट
तब मेरा तन भले ही मैला हो
हाथ में खिलौनों भरा थैला हो
हाथ में खिलौनों भरा थैला हो
इन पलों में मैं बचपन को जीता हूँ
क्यूँकी मैं पिता हूँ........!
मुझे तो समझनी है
तुम्हारी हर इच्छा, हर बात
लाकर देनी है तुम्हें हर सौगात
खिलौने, गुब्बारे और मिठाई
कपड़े , किताबें, रोशनाई
तुम्हारा हर स्वप्न करूँ पूरा
नहीं तो मैं रहूँगा अधूरा
इसी सोच के साथ मैं जीता हूँ
क्यूँकी मैं पिता हूँ .....!
मुझे बनना है घर का हिमालय
बलवान, अडिग और अटल
मज़बूत कंधे मौन संबल
तुम्हारा आदर्श, जीवन का मान
तुम्हारी जीत पर गर्वित
और हार पर धैर्यवान
मेरे कम शब्द और गहरी आवाज़
अनुशासन , अभिव्यक्ति का राज़
वक़्त की धूप में पककर तुम समझ पाओगे
फिर मेरे मन के करीब आओगे.... और जान जाओगे
इतना सब होकर भी मैं भीतर से रीता हूँ
क्यूँकी मैं पिता हूँ .....!
Saturday, 9 June 2012
Friday, 8 June 2012
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